हर व्यक्ति का अलग है अस्तित्व।
हर किसी का है विशेष महत्व।।
फिर क्यों होती सबकी आलोचना है।
हर व्यक्ति में प्रभु का तत्व है।।
किसी को पागल किसी को मुर्ख कहते है।
दुसरों की बुराई में अपना व्यक्तित्व खोते है।।
तू ऐसा तू वैसा ‘तू’ में ही खो जाता है।
कौन हु मैं क्या हु मैं खुद को भूल जाता है।।
आलोचक ही आलोचना का शिकार हो जाता है।
दूसरा कोई जब विशेष बन दिखाता है।।
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