एक चित्रकार अपने गुरुदेव के सम्मुख एक सुन्दर चित्र बनाकर लाया। गुरु ने चित्र देखकर कहाः
"वाह वाह! सुन्दर है! अदभुत है!"
शिष्य बोलाः "गुरुदेव! इसमें कोई त्रुटि रह गयी हो तो कृपा करके बताइए। इसीलिए मैं आपके चरणों में आया हूँ।"
गुरुः "कोई त्रुटि नहीं है। मुझसे भी ज्यादा अच्छा बनाया है।"
वह शिष्य रोने लगा। उसे रोता देखकर गुरु ने पूछाः
"तुम क्यों रो रहे हो? मैं तो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा हूँ।"
शिष्यः "गुरुदेव! मेरी गढाई करने वाले आप भी यदि मेरी प्रशंसा ही करेंगे तो मुझे मेरी गल्तियाँ कौन बतायेगा? मेरी प्रगति कैसे होगी?"
यह सुनकर गुरु अत्यंत प्रसन्न हो गये।
हमने जितना जाना, जितना सीखा है वह तो ठीक है। उससे ज्यादा जान सकें, सीख सकें, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।
"वाह वाह! सुन्दर है! अदभुत है!"
शिष्य बोलाः "गुरुदेव! इसमें कोई त्रुटि रह गयी हो तो कृपा करके बताइए। इसीलिए मैं आपके चरणों में आया हूँ।"
गुरुः "कोई त्रुटि नहीं है। मुझसे भी ज्यादा अच्छा बनाया है।"
वह शिष्य रोने लगा। उसे रोता देखकर गुरु ने पूछाः
"तुम क्यों रो रहे हो? मैं तो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा हूँ।"
शिष्यः "गुरुदेव! मेरी गढाई करने वाले आप भी यदि मेरी प्रशंसा ही करेंगे तो मुझे मेरी गल्तियाँ कौन बतायेगा? मेरी प्रगति कैसे होगी?"
यह सुनकर गुरु अत्यंत प्रसन्न हो गये।
हमने जितना जाना, जितना सीखा है वह तो ठीक है। उससे ज्यादा जान सकें, सीख सकें, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।
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