उतसाह
जो निराशवादी है , खिन्नचित है आलसी या प्रमादी है
वह विजय के करीब पहुचकर भी पराजित हो जाता हे लेकिन जो
उत्शाहि हो है , पुरुषाथी होता है, वह हजार बार अशफल होने
पर भी कदम आगे रखता है और अंतत ; विजय हो जाता है सवाथरहित कर्म कमयोग हो जाता है
आत्मज्ञानवाला ज्ञान ज्ञानयोगी हो जाता है
इसमे विजयी होना ही महाविजय है, सच्ची विजय है
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